पिछले लेखों में हमने जाना कि सर्वोच्च न्यायालय में तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट में वामपंथियों के संविधान “strategy and tactics document with urban perspective” (स्ट्रेटिजी एंड टैक्टिक्स डॉक्यूमेंट विथ अर्बन पर्सपेक्टिव) में किस तरह इनकी योजना के बारे में जानकारी है और किस तरह इनकी रणनीति के अनुसार इन्होंने अलग-अलग जगह पर अपने संगठन बना रखे हैं, आज उन्हीं संगठनों की जानकारी और कार्यप्रणाली के बारे में समझेंगे।
कम्युनिस्टों ने भारतीय तंत्र पर सामने से आक्रमण करने के लिए “नक्सलवाद” (माओवाद) का आंदोलन प्रारंभ किया। भले ही “माओवादी” जंगलों में रहकर भारतीय सैनिकों और पुलिसकर्मियों से “गुरिल्ला युद्ध” लड़ते हैं लेकिन इस विद्रोही विचारधारा को जनता का समर्थन और धन का प्रबंध शहरी क्षेत्रों में रहने वाले लोग करते हैं इसीलिए ये लोग “शहरी नक्सली” (urban naxals) कहलाते हैं।
जैसा कि मैंने आपको पिछले लेखों में बताया कि ये अलग-अलग तरह की विचारधारा के संगठनों से अपना “इंद्रधनुष गठबंधन” (rainbow coalition) बनाते हैं, जैसे “आतंकवादी संगठनों” का उद्देश्य हिंसा के द्वारा “ग़ज़बा ए हिंद” और दुनिया का इस्लामीकरण करना है और कम्युनिस्टों का उद्देश्य हिंसक क्रांति द्वारा “माओवादी शासन” स्थापित करना है।
यहां दोनों का उद्देश्य भले ही अलग-अलग है पर मार्ग एक ही है – “हिंसा का मार्ग”
इसीलिए इन “अर्बन नक्सलियों” का जम्मू-कश्मीर से लेकर पूर्वोत्तर भारत के सभी उग्रवादी संगठनों से गठजोड़ है।
जम्मू कश्मीर में जम्मू-कश्मीर आतंकवादी संगठन, लश्कर-ए-तैयबा और “सिमी संगठन” से इनका सीधा संबंध है।
पूर्वोत्तर में “युनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम”, नेशनलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड जैसे संगठनों से इनके संबंध हैं।
नेपाल को एक तरह का क्रांति स्थल (compact revolutionary zone)बनाने के लिए नेपाल में भी ये कार्य कर रहे हैं, इसी कारण नेपाल आज इतनी उथल-पुथल देख रहा है।
आतंकी संगठनों और अर्बन नक्सलियों मध्य संबंधों का अनुमान इसी घटना से लगाया जा सकता है कि जब २००२ में कोलकाता में “अमेरिकन कल्चरल सेंटर” पर जो आतंकी हमला हुआ था उस आतंकी संगठन के प्रमुख और हमले के मास्टरमाइंड ने झारखंड में एक “नक्सली समर्थक” के घर में शरण ली थी।
दक्षिण एशिया में इन्होंने “कोआर्डिनेशन कमेटी ऑफ द माओइस्ट पार्टी ऑफ साउथ एशिया” नाम के संगठन के रूप में
नेपाल, बंगलादेश और श्रीलंका का एक त्रिकोणीय संगठन बनाया है जिसका मुख्यालय “भारत” में है।
इनके आई सी आई और लिट्टे जैसे आतंकी संगठनों से भी संबंध हैं, इनके अंतरर्राष्ट्रीय स्तर पर क्रांतिकारी आंदोलन चलते रहते हैं, इनका फिलीपींस में भी एक लेफ्ट विंग संगठन है।
वामपंथियों को नक्सल आंदोलन लाल आतंक हेतु “बैंकाक” तक से फंडिंग मिलती है जहां पर एक “राजनैतिक पार्टी के राजकुमार” आदतन हर तीन माह में भ्रमण हेतु जाते रहते हैं।
START – National consortium for the study of terrorism and responses to terrorism (नेशनल कंसोर्टियम फॉर द स्टडी ऑफ टेरोरिज्म एंड रिस्पॉन्सेज़ टू टेरेरिज्म) ने इन लाल आतंकियों को विश्व का “पांचवां” सबसे ख़तरनाक (घातक) आतंकवादी संगठन घोषित किया है।
अगर पूरे विश्व ने “हिंसा के प्रयोग से लोगों को भयग्रस्त करके अपने राजनैतिक स्वार्थों को साधने को ही आतंकवाद की परिभाषा माना है” तो इन लोगों को क्यों आतंकवादी घोषित नहीं किया जाता है जबकि नक्सली आंदोलन के साथ साथ इनका हर एक तथाकथित शांतिपूर्ण आंदोलन या कोई भी जुलूस हिंसा पर ही जाकर समाप्त होता है।
शाहीन बाग़ से दिल्ली दंगों तक और भीमा कोरेगांव हिंसा इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं।
पिछले लेखों में मैंने इनके दस्तावेज रूपी संविधान को “संवेदनहीन” कहा है उसका कारण यह है कि ये बस्तर के आदिवासी क्षेत्रों में जन अदालत चलाते हैं और उसमें किसी अपराध की सज़ा देते हुए कहते हैं कि इसको “डेढ़ फुटा” कर दो मतलब व्यक्ति की गर्दन अलग कर दी जाये ताकि “डेढ़ फुट” लंबाई कम हो जाये और ये बर्बरता चलती है इनकी जन अदालतों में।
आगे के लेखों में जानेंगे कि किस तरह से नक्सल क्षेत्रों में ये फिरौती के रूप में लोगों धन ऐंठते हैं और कैसे अर्बन नक्सलियों के रूप में इन्होंने भारत की व्यवस्था पर कब्ज़ा किया।
तब तक के लिए हर हर महादेव 🙏🙏🙏