मौन है मन की मृत्यु, मौन है मन का समाप्त हो जाना, मौन है मन का विलीन हो जाना। जैसे सागर में लहरें हैं, कोई हमसे आकर पूछे कि जब सागर शांत होता है तो लहरों की क्या अवस्था होती है, तो हम क्या कहेंगे? हम कहेंगे, जब सागर शांत होता है तो लहरें होती ही नहीं। लहरों की अवस्था का सवाल नहीं। सागर अशांत होता है तो लहरें होती हैं। असल में लहरें और अशांति एक ही चीज के दो नाम हैं। अशांति नहीं रही तो लहरें नहीं रहीं, रह गया सागर।

मन है अशांति, मन है लहर। जब सब मौन हो गया तो लहरें चली गईं, विचार चले गए, मन भी गया, रह गया सागर, रह गई आत्मा, रह गया परमात्मा। परमात्मा के सागर पर मन की जो लहरें हैं वे ही हम अलग अलग व्यक्ति बन गए हैं। एक – एक लहर को अगर होश आ जाए तो वह कहेगी ‘मैं हूं।’ और उसे पता भी नहीं कि वह नहीं है, सागर है।

यह जो हमें खयाल उठता है कि ‘मैं हूं’ यह हमारी एक -एक मन की अशांत लहरों का जोड़ है। ये लहरें विलीन हो जाएंगी तो आप नहीं रहेंगे, मन नहीं रहेगा। रह जाएगा परमात्मा, रह जाएगा एक चेतना का सागर।

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