जैसा कि पिछले लेख में मैंने आपको “साम्यवाद” और “वामपंथ” क्या है, उसके बारे में आपको बताया था।
आज बात करेंगे कि ये आखिर किस तरह काम करते हैं, किस तरह भारत देश की व्यवस्था में ये लोग सेंधमारी कर चुके हैं और इनका “नक्सलियों” से क्या संबंध है?
जैसा कि पिछले लेख में मैंने आपको बताया था कि ये “वर्तमान तंत्र” को नष्ट करना चाहते हैं और एक नया साम्यवाद के सिध्दांतों पर आधारित तंत्र स्थापित करना चाहते हैं।
दरअसल ये यह काम करते कुछ इस तरह से हैं कि यह सभी तरह के “वंचित” और “असंतुष्ट लोगों के समूहों” को निशाना बनाते हैं और उनको अपने “हथियार” की तरह प्रयोग करते हैं, इनका सबसे आसान शिकार आदिवासी, दलित(शब्द जो कि वामपंथी इस्तेमाल करते हैं), महिलाएं और हर तरह के भाषा – संस्कृति आधारित या धार्मिक अल्पसंख्यक होते हैं क्योंकि इन समूह के लोगों के अंदर “असंतुष्टि की भावना” और “वर्तमान तंत्र के प्रति आक्रोश” उत्पन्न करना बेहद आसान होता है।
इसका कारण यह है कि इन लोगों को यह महसूस कराना बेहद आसान होता है कि आप पर बहुत “अत्याचार” किये गये हैं और वर्तमान व्यवस्था आपको मूलभूत अधिकार और स्वच्छंद जीवन जीने का अधिकार नहीं देती, और यह सब सुनकर वर्तमान तंत्र के प्रति एक विद्रोह की भावना इन लोगों मन जाग जाग जाती है और इन्हीं लोगों का प्रयोग अलग-अलग जगहों पर इनका लक्ष्य पूरा करने के लिए किया जाता है।
वामपंथियों का सारा ध्यान इस बात पर केंद्रित होता है कि किस तरह देश में “अस्त-व्यस्तता” फैलाई जा सके जिसे बाद में हिंसक प्रदर्शनों में परिवर्तित कर ख़ून ख़राबा किया जाये जिससे अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो और फिर इसी अराजकता की स्थिति में “सशस्त्र क्रांति” के द्वारा वर्तमान तंत्र को धराशायी कर दिया जाये ताकि एक नया “साम्यवादी राज्य” स्थापित हो सके और इनका स्वयं का लिखा हुआ एक “संवेदनहीन” संविधान लागू किया जा सके।
इनका संविधान एक प्रकार का दस्तावेज है जिसका नाम – “strategy and tactics document with urban perspective” (स्ट्रेटिजी एंड टैक्टिक्स डॉक्यूमेंट विथ अर्बन पर्सपेक्टिव) है। और यह इन्हीं वामपंथियों के द्वारा लिखा गया है।
और इस संविधान में साफ – साफ लिखा हुआ है कि
“हमें शहरी क्षेत्रों में प्रभावशाली व्यक्तियों जो कि काफी समय से हमारी संख्या बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं, उनकी सहायता से आसानी से शिकार हो जाने वाले अल्पसंख्यक समूहों, महिलाओं, दलितों, मज़दूरों, वंचित लोगों और विद्यार्थियों को निशाना बनाना है”
ताकि देश में एक तरह की “अदृश्य नक्सल विचाराधारा का गठजोड़ बुध्दिजीवियों, मीडिया संस्थानों और शिक्षण संस्थानों के माध्यम से देश में विद्यमान हो सके जो कि सुनियोजित तरीके से घेराबंदी कर वर्तमान भारतीय तंत्र को धराशायी कर माओवादी शासन स्थापित करने का लक्ष्य प्राप्त करें”।
सोनिया गांधी की कांग्रेस सरकार के समय पर गृह मंत्रालय द्वारा सुप्रीम कोर्ट में एक रिपोर्ट ग़लती से प्रस्तुत कर दी गई थी और “लाल बहादुर शास्त्री” की रहस्यपूर्ण मृत्यु पर बनी फिल्म के निर्देशक “विवेक अग्निहोत्री” दावा करते हैं कि उनके पास पर्याप्त साक्ष्य (सबूत) हैं कि उन लोगों को बाद में सोनिया गांधी द्वारा एक कमेटी बनाकर दंड भी दिया गया।
सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत उस एफीडेविट (शपथ लेख/ हलफनामा) में कहा गया था कि “बहुत सारे संगठन मानवाधिकार एनजीओ के वेश में काम कर रहे हैं जो कि साम्यवादी सिध्दांतों के समर्थकों, शिक्षण संस्थानों के प्रमुखों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के द्वारा चलाये जाते हैं।
“Startegy and tactics of the Indian revolution by Maoists” ( माओवादियों द्वारा भारत में क्रांति हेतु योजना और रणनीति) – गृह मंत्रालय की इसी रिपोर्ट में कहा गया है कि भले ही ये लोग मानवाधिकार संगठनों के वेश में काम करते हैं लेकिन ये लोग अपनी पहचान अलग बताते हैं ताकि किसी भी प्रकार की कानूनी कार्रवाई से बचा जा सके।
नक्सलियों की संपूर्ण सैन्य गतिविधियां भले ही जंगली क्षेत्रों में होती हैं लेकिन उनकी पूरी फंडिंग और रणनीति शहरी क्षेत्रों (urban areas) में तैयार की जा जाती है इसीलिए इन लोगों को “अर्बन नक्सल” (urban naxal) भी कहते हैं।
ये लोग नारीवादी संगठनों (feminist groups), नास्तिक समूहों (atheist groups), अंधविश्वास विरोधी आंदोलन (anti superstitial movements), बुध्दिजीवियों(intellectuals), छात्रों(Students), मज़दूरों(labourers), झुग्गी-झोपड़ी प्रकोष्ठ(slum groups), किसानों (farmers), पत्रकारों (journalists) और यहां तक कि प्रतियोगी परीक्षा केंद्रों (competitive exam centers) तक के साथ काम करते हैं।
अब ये किस तरह काम करते हैं और इनका तोड़ क्या है यह आपको अगले लेखों में बताऊंगा क्योंकि यह विषय बहुत बड़ा है और सब कुछ एक लेख में लिखने से लेख काफी लंबा हो जायेगा।
तब तक के लिए
हर हर महादेव 🙏🙏🙏
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