पिछले लेखों में मैंने आपको बताया कि वामपंथी किस तरह काम करते हैं आज इनके उस दस्तावेज जो कि इनका संविधान है उसकी अन्य बातें व्याख्या सहित समझेंगे।
Strategy and tactics of the Indian revolution by Maoists (स्ट्रेटिजी एंड टैक्टिक्स ऑफ द इंडियन रिवोल्यूशन बाय माओइस्ट्स) –
गृह मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में जो रिपोर्ट प्रस्तुत की थी उसके अनुसार “माओवादी समर्थकों ने व्यवस्थित और सामंजस्यपूर्ण रूप से शहरों और कस्बों में माओवादी सिध्दांतों के प्रचार प्रसार हेतु भारतीय तंत्र के प्रति एक तरह का युद्ध छेड़ने का दायित्व अपने कंधों पर लिया”।
(इन्हीं शहरों में रहने वाले माओवाद समर्थकों को ही “अर्बन नक्सल” कहा जाता है।)
और इन्हीं “अर्बन नक्सलियों” ने सही मायनों में भारत देश में “माओवादी आंदोलन” को जीवित रखा।
इस रिपोर्ट में तो यहां तक कहा गया है कि कई अर्थों में ये लोग “people’s liberation of guerrilla army” (पीपुल्स लिबरेशन ऑफ गुरिल्ला आर्मी) जो कि “कम्युनिस्ट पार्टी का भारत में प्रतिबंधित सशस्त्र सैन्य बल” है, उससे भी अधिक घातक हैं क्योंकि ये सामान्य जनमानस की विचारधारा को प्रभावित करके उनके मनों “वर्तमान तंत्र के प्रति एक विद्रोही स्वभाव” को जन्म देने का प्रयास करते हैं ताकि देश की जनता इनके समर्थन में आए और इनके लक्ष्य को पूर्ण करने में बिल्कुल ही “अनभिज्ञ”(अनजान) होकर इनका साथ देने लगे।
ये लगभग तीन – चार स्तरों पर काम करते हैं – secret (गुप्त), open(मुक्त), semi open(अर्द्ध मुक्त), legal(कानूनी रूप से मुक्त)।
वरवरा राव (भीमा कोरेगांव हिंसा का आरोपी) जैसे लोग शहरी क्षेत्रों में आंदोलन करते हैं और इन्हीं “अर्बन नक्सलियों” द्वारा माओवादी क्रांति की रणनीति की तैयारी की जाती है, जिसमें “तथाकथित बुद्धिजीवियों” द्वारा इस आंदोलन को हर एक मंच से नैतिक और बौद्धिक समर्थन दिया जाता है और नक्सलियों द्वारा की गई हिंसा और हिंसक विचारधारा को न्यायसंगत ठहराने का पूरा प्रपंच रचा जाता है।
माओवाद समर्थकों के हितैषियों का एक पूरा समूह भारत सरकार के “आंतरिक एवं उच्च पदों” पर आसीन हैं, यानि कि हम “सत्ताएं” बदलने में लगे रहे और इन वामपंथियों ने पूरी “व्यवस्था” पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया क्योंकि सत्ताएं तो “पांच साल” में बदल जाती हैं और व्यवस्था बदलने में पूरे “साठ साल” लग जाते हैं और आप अनुमान लगा ही सकते हैं कि साठ वर्षों के लंबे अंतराल में कितने लोगों का “कम्युनिस्ट आंदोलन के प्रति धुव्रीकरण” किया जा सकता है।
माओ ने अपनी योजनांतर्गत कहा था कि इस क्रांति का अंतिम लक्ष्य “शत्रु की नींव” यानि कि शहरों पर अपना आधिपत्य (कब्ज़ा) करना है और यह कार्य शहरों पर्याप्त कार्य किए बिना संभव नहीं है और इन कामों में लोगों का कम्युनिस्ट विचारधारा के प्रति ध्रुवीकरण करना, लोगों के मन में असंतुष्टि की भावना भरना, उनमें हीनता की भावना भरना, उनके वर्तमान तंत्र के प्रति विद्रोही बनाना इत्यादि आता है।
तत्कालीन गृह मंत्रालय की रिपोर्ट में सर्वोच्च न्यायालय में कहा गया था कि “अर्बन नक्सलियों की योजनानुसार ये अलग-अलग तरह की विचारधारा के राष्ट्रद्रोही, उग्रवादी और आतंकी संगठनों के साथ एक तरह का “इंद्रधनुष गठबंधन” (rainbow coalition) बनाते रहते हैं ताकि “वर्तमान तंत्र” पर सामने से हिंसक आक्रमण किया जा सके।
यानि कि अलग-अलग तरीकों से तंत्र को धाराशाई करने के प्रपंच रचे जा रहे हैं, “अर्बन नक्सलियों” यानि कि इतिहासकारों, बुध्दिजीवियों और मीडिया कर्मियों द्वारा वर्तमान तंत्र पर “वैचारिक आक्रमण”, सामाजिक कार्यकर्ताओं और एनजीओ द्वारा तंत्र के विरोध में तरह-तरह के शाहीन बाग़ जैसे आंदोलन और इन्हीं से गुप्त रूप से संबंधित नक्सलियों और आतंकवादियों द्वारा वर्तमान तंत्र पर “हिंसक आक्रमण” किया जाता है।
आगे के लेखों में वामपंथ के और अन्य पहलुओं को व्याख्यात्मक रूप से समझेंगे कि कैसे वामपंथियों ने “व्यवस्था” पर कब्ज़ा कर उसे खोखला किया।
तब तक के लिए हर हर महादेव 🙏🙏🙏