पिछले लेखों में हमने जाना कि किस तरह देशभर में दस्तावेज रूपी संविधान “strategy and tactics document with urban perspective” (स्ट्रेटिजी एंड टैक्टिक्स डॉक्यूमेंट विथ अर्बन पर्सपेक्टिव) में उल्लिखित रणनीति के अनुसार वामपंथी संगठन कार्य करते हैं और कैसे इनके आतंकी और उग्रवादी संगठनों से प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से संबंध (direct and indirect links) हैं।
आज हम जानेंगे कि तरह ये लोग किस तरह अपनी हिंसक क्रांति के लिए निर्धन और मासूम आदिवासियों से और अन्य नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में रहने या कोई काम करने वाले लोगों से पैसे ऐंठते हैं।
आप सबने कई बार टीवी बहसों (debates) में बैठे अर्बन नक्सलियों को भारत की शिक्षा व्यवस्था, अस्पतालों, सड़कों पर ज्ञान देते हुए सुना होगा कि हमारे देश में सबको शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन की लोगों को उपलब्ध नहीं हैं।
जबकि यही अर्बन नक्सली, जिन नक्सलियों को शहरों से दाना पानी पहुंचाने का काम करते हैं वो ही नक्सली प्रशासन की ओर से बनने वाले विद्यालयों, अस्पतालों, सड़कों को तोड़ते और नुकसान पहुंचाते हैं।
भारतीय इंटेलिजेंस एजेंसी (intelligence agency of india) द्वारा पुलिस कमिश्नर के माध्यम से २०१६ (2016) में महाराष्ट्र सरकार और भारत सरकार को एक रिपोर्ट में नक्सलियों द्वारा फिरौती का पैसा ऐंठने का पूरा विवरण, पूरा डेटा सौंपा गया था।
इस पूरा डेटा में बताया गया था कि २०१६ (2016) में पूरे छत्तीसगढ़ के वन्य क्षेत्रों से ३०० (300) करोड़ और और पूरे भारत देश से १००० (1000) करोड़ की राशि आदिवासियों से नक्सलियों द्वारा फिरौती के रूप में ऐंठी गई है।
इस पैसे का उपयोग कहां होता है??
इस पैसे का उपयोग होता है – कम्युनिज़्म समर्थक मीडिया हाउस, थिंक टैंक (विचारक समूह) की फंडिंग, साहित्यिक सम्मेलनों के आयोजन और तरह-तरह के अभियान चलाने के लिए होता है। इन्हीं पैसों से “अरुंधति रॉय” जैसे लोग १० – १० करोड़ रुपए तक के समारोहों का आयोजन करते हैं।
“अरुंधति रॉय” खुलकर अपनी बातें मनवाने के लिए हिंसा और उग्र तरीके अपनाए जाने की पक्षधर रही हैं और भड़काऊ बयान भी देती रहतीं हैं।
इन्हीं सब मंचों के माध्यम से लोगों की विचारधारा को प्रभावित करने का काम किया जाता है और उनकी सोच को “कम्युनिज़्म” की तरफ झुकाने का प्रयास किया जाता है और लोगों की सोच प्रभावित करने में मीडिया का कितना बड़ा हाथ है यह किसी से छुपा नहीं है।
“आज किसी भी व्यक्ति की विचारधारा देखकर यह आसानी से बताया जा सकता है कि वह कौन सा न्यूज़ चैनल देखता होगा”।
*ये “अर्बन नक्सली” शहरों में बैठकर हमेशा आदिवासियों की, ग़रीबों की बात करेंगे लेकिन इनके ही पाले हुए “नक्सली” जब एक १० साल बच्ची जो कि जंगल से तेंदुपत्ता लेकर बाज़ार में बेंचने जाती है उससे तक ये नक्सली फिरौती वसूली कर लेते हैं और पूरे एक सीज़न में ६० (60) करोड़ तक छोटे छोटे आदिवासी बच्चों से वसूल लिये जाते हैं।
*शहरों में बैठे नक्सली (अर्बन नक्सली) शिक्षा और सुविधाओं का ज्ञान बघारते हैं और दूसरी तरफ नक्सली आदिवासी क्षेत्रों में होने वाले बड़े निर्माण कार्यों जैसे विद्यालयों, सड़कों की निर्माण लागत का १५{551c903f756d5bf12b7d58e2eb1e8b74af35058efa7a05d3e7b41e9147979503}(15{551c903f756d5bf12b7d58e2eb1e8b74af35058efa7a05d3e7b41e9147979503}) पैसा और छोटे मोटे निर्माण कार्यों की लागत का १०{551c903f756d5bf12b7d58e2eb1e8b74af35058efa7a05d3e7b41e9147979503} (10{551c903f756d5bf12b7d58e2eb1e8b74af35058efa7a05d3e7b41e9147979503}) पैसा फिरौती के रूप में ऐंठा जाता है।
**रास्ते से निकलने वाले वाहनों को १००० (1000) रुपए प्रति ट्रिप इन नक्सलियों को देने पड़ते हैं।
**शिक्षकों, सरकारी कर्मचारियों और मंदिर के पुजारियों तक को अपने वेतन का हिस्सा इनको फिरौती के रूप में देना पड़ता है।
**खेती-बाड़ी उपकरणों के ऑपरेटरों को भी अपनी कमाई का १०{551c903f756d5bf12b7d58e2eb1e8b74af35058efa7a05d3e7b41e9147979503} (10{551c903f756d5bf12b7d58e2eb1e8b74af35058efa7a05d3e7b41e9147979503}) पैसा नक्सलियों को देना पड़ता है।
**साप्ताहिक हाट-बाजार के व्यापारियों को खाद्य सामग्री, राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को चंदा इन नक्सलियों को देना पड़ता है।
और तो और भारत सरकार की “मनरेगा” योजना में पंजीकृत मज़दूरों से १३० (130) करोड़ रुपए प्रत्येक महीने में वसूल लिए जाते हैं।
यह २०१६ (2016) के आंकड़े हैं और महाराष्ट्र सरकार की इंटेलिजेंस एजेंसी के पास भी यह रिपोर्ट है।
राजदीप सरदेसाई जैसे पत्रकार हमेशा यह बोलते रहते हैं कि सुधा भारद्वाज जैसे महान सामाजिक कार्यकर्ताओं को जेल में डाल दिया गया जो कि आदिवासियों के केस का न्यायालयों में प्रतिनिधित्व करते हैं जबकि सत्य तो यह है कि ये लोग एक भी आदिवासी का केस नहीं लड़ते बल्कि सिर्फ और सिर्फ नक्सलियों के केस लड़ते हैं।
अर्बन नक्सलियों के प्रत्यक्ष संगठन (front organization/ FO) जिन्हें “एफ ओ” भी कहा जाता है जिनमें से कुछ नाम हैं –
दण्डकारण्य आदिवासी किसान महिला संघ, आदिवासी बालक संघ, महिला मुक्ति संघ, कबीर कला मंच, दिल्ली सफाई कर्मचारी संघ ये सारे के सारे सामाजिक और कला संगठनों के वेश में हुए अर्बन नक्सलियों के प्रत्यक्ष संगठन हैं।
जंगलों से फिरौती वसूली द्वारा पैसा, पूर्वोत्तर से “लाल आतंक” के लिए फंडिंग, पश्चिमी भागों से “इस्लामिक आतंकवाद” हेतु फंडिग प्राप्त करके ये लोग देश में आंदोलन, विरोध प्रदर्शन और हिंसा द्वारा अस्तव्यस्तता और तनाव फैलाने के प्रयास करते हैं।
अगले लेख में आपको यह समझाने का प्रयास करूंगा कि किस तरह “आपातकाल” के समय इन लोगों ने पूरे देश की “व्यवस्था” पर कब्ज़ा किया और इनका वर्तमान में देश के अयोग्यता को अपने सर पर ढ़ोते “प्रमुख विपक्षी दल” से क्या संबंध है।
तब तक के लिए हर हर महादेव 🙏🙏🙏