पिछले लेखों में हमने जाना कि किस तरह से किस तरह नक्सलियों द्वारा वन्य क्षेत्रों में फिरौती वसूली जाती है और किन कार्यों में यह पैसा अर्बन नक्सलियों द्वारा उपयोग किया जाता है।

आज बात करेंगे कि किस तरह आपातकाल के समय वामपंथियों ने देश की पूरी व्यवस्था में सेंधमारी कर उस पर अपना कब्ज़ा जमा लिया।

 सन २००४ (2004) में माओवादी संविधान “स्ट्रेटिजी एंड टैक्टिक्स डॉक्यूमेंट विथ द अर्बन पर्सपेक्टिव” (strategy and tactics document with the urban perspective) पर आधारित जो एफिडेविट सर्वोच्च न्यायालय में प्रस्तुत किया गया था और फिल्मकार विवेक अग्निहोत्री यह दावा करते हैं कि उनके पास पर्याप्त साक्ष्य हैं कि जिन लोगों ने भूल से इस रिपोर्ट को सर्वोच्च न्यायालय में प्रस्तुत कर दिया था उन्हें सोनिया गांधी द्वारा नेशनल एडवाइजरी काउंसिल (NAC – national advisory council) गठित कर  दण्डित किया गया था।

विवेक अग्निहोत्री द्वारा “बुध्दा इन ए ट्राफिक जाम” नामक एक फिल्म बनाई गई जिसे उन्होंने अनजाने में बनाया था, उन्हीं फिल्म वितरकों को रिलीज़ के लिए दे दी जो कि स्वयं शहरी नक्सली थे बिना इस अनुमान के कि यह फिल्म  इनके ही विरुद्ध थी, फिर जेएनयू में यह फिल्म दिखाने के लिए जेएनयू की सिनेमा शिक्षण विभाग की डीन को भेजी जबकि वो भी स्वयं एक “शहरी नक्सली” थीं।

जाधवपुर विश्वविद्यालय में भी इस फिल्म के कारण “विवेक अग्निहोत्री” पर हमला किया गया क्योंकि यह विश्वविद्यालय भी जेएनयू की तरह इन शहरी नक्सलियों का गढ़ बन चुका है और यहां कई नेताओं के कार्यक्रम में प्रदर्शन भी किए गए हैं।

इस सब में कांग्रेस पार्टी के प्रत्यक्ष रूप से सम्मिलित होने के कारणों पर जब उन्होंने शोध किया तो उन्हें कुछ “सीआईए” और “केजीबी” जासूसी संस्थानों के दस्तावेज प्राप्त हुए जिनमें एक भारतीय राजनेत्री के लिए शब्द “वानो” (VANO) प्रयोग किया गया था जिसे आगे और शोध करने पाया गया कि एक “सीआईए” और “केजीबी” डॉक्यूमेंट के दस्तावेजों पर आधारित पुस्तक “मित्रोखिन आर्काइव्स”(mitrokhin archives) में यह उल्लेख है कि यह शब्द तत्कालीन प्रधानमंत्री “इंदिरा गांधी” के लिए प्रयोग किया गया था और यह बात इसी पुस्तक का संदर्भ देकर शास्त्रीजी की रहस्यपूर्ण मृत्यु पर आधारित फिल्म “ताशकंद फाइल्स” में भी दिखाई गई थी।

सत्तर के दशक में जब इंदिरा गांधी की पकड़ कमज़ोर पड़ रही थी तब उन्होंने अपने पैर वापस से जमाने के लिए तब सारे कम्युनिस्टों से सहायता  ली और यहीं “इंदिरा गांधी” ने अनजाने में बहुत बड़ी भूल कर दी।

इंदिरा गांधी और कम्युनिस्टों के बीच की सौदेबाज़ी में, कम्युनिस्टों द्वारा इंदिरा गांधी को समर्थन दिया गया और बदले में कम्युनिस्टों ने देश की व्यवस्था में सारे महत्वपूर्ण पद कब्ज़ा लिए।

नूरुल हसन को शिक्षा मंत्री बना दिया गया, कला और संस्कृति विभागों के महत्वपूर्ण पदों और मीडिया में एक के बाद एक सारे कम्युनिस्टों को बैठा दिया गया।

उस समय समाचार पत्रों में प्रकाशन के लिए एक कोटा निर्धारित था जिसे “न्यूज़ प्रिंट” कहा जाता था उसमें कुछ भी प्रकाशित करने से पहले इंदिरा गांधी और नूरुल हसन द्वारा सहमति देने के बाद ही प्रकाशन की अनुमति मिलती थी और यह न्यूज़ प्रिंट पूरा का पूरा कम्युनिस्टों को दे दिया गया।

अब आप यह समझ ही सकते हैं कि अगर कोई एक विशेष राजनीतिक विचारधारा का समर्थक व्यक्ति किसी महत्वपूर्ण और प्रभावी पद पर आसीन हो जाता है तो वह कौन कौन से तरीके न अपनायेगा लोगों को उस विचारधारा के प्रति झुकाने में??

और यहां तो सभी प्रभावशाली और महत्त्वपूर्ण पदों पर ही कम्युनिस्टों की पूरी की पूरी फौज बैठा दी गई थी।

फिर उसी समय से ही, लगभग सन् १९७५ (1975) के बाद से ही कम्युनिस्टों ने अपनी योजना के अंतर्गत हिंदू संस्कृति और सभ्यता पर आक्रमण करना शुरू कर दिया और इसी कारण १९७५ (1975) के बाद से ही जो भी पीढ़ियां आईं वो अपने हिंदू परिवारों में जन्म लेने के कारण एक तरह के पिछड़ेपन और हीन भावना को लेकर बड़े हुए क्योंकि उन्हें हमारी संस्कृति की महानता, चंद्रगुप्त मौर्य, महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी जैसे महान हिंदू सम्राटों, हम्पी और खजुराहो जैसी महान और अध्यात्मिक शिल्पकलाओं, श्री अरविंदो, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद जैसे महापुरुषों के बारे में उनका ज्ञान अति अल्प या नगण्य था और इसका कारण यही था कि भारत और भारतीय संस्कृति की महानता को सिध्द करने वाली सभी घटनाओं और सभी साक्ष्यों को विद्यालयों के पाठ्यक्रम में कम से कम या नगण्य स्थान दिया गया।

इसके विपरीत भारत के इतिहास की सभी नकारात्मक घटनाओं और बर्बर आक्रमणकारियों के गुणगान से पाठ्यक्रमों को भर दिया गया ताकि एक हीन भावना से ग्रसित समाज भारत देश में उत्पन्न किया जा सके क्योंकि हीन भावना से ग्रसित समाज कभी सत्य के लिए उठ नहीं सकता और न राष्ट्र की रक्षा के लिए लड़ सकता है और उसे गुलामों की तरह किसी भी तरफ मोड़ना बिल्कुल आसान होता है।

वामपंथियों के दस्तावेज रूपी संविधान – “स्ट्रेटिजी एंड टैकटिक्स डॉक्यूमेंट विथ अर्बन पर्सपेक्टिव” (strategy and tactics document with the urban perspective) में यह साफ साफ लिखा है कि हिंदूओं की धार्मिक मान्यताओं और धार्मिक स्थलों को सीधी चुनौती दी जाये ताकि हिंदू परिवारों का वहां जाना बंद हो जाए।

इसी षड्यंत्र के अनुसार “खजुराहो के मंदिरों” को “कामुकता” के प्रतीक के रूप में भारतीयों के समक्ष प्रस्तुत किया गया जबकि खजुराहो के मंदिरों के बाहर बनी कुछ “तांत्रिक” हैं और “अध्यात्मिक प्रक्रिया” में उनका प्रयोग ध्यान हेतु किया जाता रहा है। इसकी विस्तृत चर्चा बाद में करेंगे।

भारत के सारे महान विचारों और घटनाओं को इन लोगों ने पूर्णतः बर्बाद करने का प्रयास किया है एवं पूरी शिक्षा व्यवस्था का आधुनिकीकरण करने स्थान पर अमेरिकीकरण और अंग्रेज़ीकरण करने पर अधिक ज़ोर दिया या यूं कहें कि शिक्षा के अमेरीकीकरण और अंग्रेज़ीकरण को ही आधुनिकता का नाम दे दिया, उसका पर्याय बना दिया।

कांग्रेस पार्टी द्वारा अर्बन नक्सलियों के कब्जे वाले कई संगठन गठित किए – “नेशनल फिल्म डेवलपमेंट कॉरपोरेशन”, “चाइल्ड फिल्म डेवलपमेंट कॉरपोरेशन” इत्यादि  जिनके सिंहासन “अर्बन नक्सलियों” के लिए सुरक्षित थे तभी हिंदी फिल्मों में हिंदू धर्म और संस्कृति का निरंतर मज़ाक उड़ाया जाता रहा है।

ये लोगों भारत के बाहरी दुश्मनों से अधिक ख़तरनाक हैं क्योंकि ये भारत को अंदर से खोखला तो कर ही रहे हैं, साथ ही बाहरी विरोधी भी इनसे अप्रत्यक्ष रूप से सहायता प्राप्त करते हैं।

इन लोगों को हमें पहचानने आवश्यकता है और इनका हर तरफ से विरोध करना है ताकि देश को इनसे बचाया जा सके।

अब शेष बातें आगे के लेख में और शायद अगला लेख वामपंथ लेख श्रृंखला का अंतिम लेख हो।

तब तक के लिए

हर हर महादेव 🙏🙏🙏

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