ॐ असतो मा सद्गमय।
तमसो मा ज्योतिर्गमय।
मृत्योर्मामृतं गमय ॥
ॐ शांति शांति शांति।। – बृहदारण्यकोपनिषद् – १.३.२८
अर्थात् –
मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो।
मुझे अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो।
मुझे मृत्यु से अमरता (अमरत्व) की ओर ले चलो।।
आज तक हम “बृहदारण्यक उपनिषद्” की इन पंक्तियों को एक प्रार्थना के रूप उच्चारित करते या गाते हुए आ रहे हैं परन्तु क्या हमने कभी इस ओर अपना ध्यान आकर्षित किया कि इन तीनों पंक्तियों में एक समानता है?
क्या है वो समानता??
वो समानता यह है कि इन तीनों पंक्तियों में हर “प्रारंभिक अवस्था” को उसकी सबसे “उच्च और अंतिम अवस्था” तक पहुंचाने की बात कही गई है, एक “निम्न अवस्था” से “उच्चतम शिखर” को छूने की बात की गई है।
जैसे अगर हम क्रमशः तीनों पंक्तियों को समझें तो –
प्रथम पंक्ति – असत्य से सत्य की ओर गतिमान होने की बात करती है और “असत्य” की यात्रा अगर उर्ध्वगामी हुई तो वह “सत्य” पर ही जाकर समाप्त होती है। असत्य प्रारंभिक और सबसे निम्न अवस्था है और “सत्य – असत्य की सबसे उच्चतम और अंतिम अवस्था”।
द्वितीय पंक्ति – “अंधकार से प्रकाश” की ओर गतिमान होने की बात करती है, अगर अंधकार से ऊपर उठना उठना है, उससे पार जाना है तो प्रकाश की ओर गतिमान होना होगा क्योंकि “प्रकाश” तक पहुंचकर ही “अंधकार” समाप्त किया जा सकता है तो अंधकार की अंतिम गति प्रकाश होगी और वही उसकी अंतिम और उच्चतम अवस्था है।
तृतीय पंक्ति – “मृत्यु से अमरता(अमरत्व)” तक पहुंचने की बात करती हैं क्योंकि अगर मृत्यु के पार जाना है तो “अमृत” को प्राप्त करना होगा। जीवन की अंतिम और उच्चतम अवस्था अगर मृत्यु है तो मृत्यु की “अंतिम और उच्चतम अवस्था” – “अमरत्व” होगी क्योंकि मृत्यु के पार तभी जाया जा सकता है जब मृत्यु के ऊपर की अवस्था को पा लिया जाये।
प्रत्येक पंक्ति में जीवन के प्रत्येक आयाम के उच्चतम शिखर को छूने की बात की गई है, प्रत्येक पंक्ति में वर्तमान अवस्था से और ऊंचा उठने की बात की गई है।
“शून्य से अनंत”(zero to infinity) तक की यात्रा की बात की गई है और “किसी भी संख्या का अंत अनंत(infinity) ही तो है”। अनंत प्रत्येक उपस्थित संख्या की उच्चतम अवस्था, उच्चतम शिखर है, उसके और ऊपर नहीं जाया जा सकता और उसी उच्चतम शिखर को छूने की बात यहां की गई है।
आज तक अधिकतर हम इन पंक्तियो को एक “प्रार्थना” के रूप में गाते या उच्चारित करते रहे हैं लेकिन अगर हम थोड़ा गौर करें तो पायेंगे कि “यही तो हमारे जीवन का स्वभाव है”। हम वर्तमान में जो भी हैं उससे कुछ और अधिक, कुछ और ऊपर होना चाहते हैं, हम ऊपर उठना चाहते हैं और यही हमारे जीवन में प्रतिक्षण घटता है कि हम कुछ और अधिक होना चाहते हैं, एक अपूर्णता का भाव हमारे मानस में सदैव बना रहता है और वही भाव हमें कुछ और अधिक हो जाने को प्रेरित करता है।
प्रत्येक श्लोक के बाद शांति की बात होती है क्योंकि प्रत्येक कार्य हमेशा मनुष्य के मन की शांति हेतु ही किये जाते हैं।
वर्तमान में हमारे पास जो भी है उससे हम हमेशा कुछ अधिक चाहते हैं और जब यह चाह भौतिक वस्तुओं (material goods) से ऊपर उठ जाती है या दूसरे शब्दों में जब “भौतिकवाद” (materialism) अपने उच्चतम शिखर तक पहुंच जाता है तब हमारी “आध्यात्मिक यात्रा” प्रारंभ होती है।
आज अगर भारत की आत्मा आध्यात्म में बसती है तो उसका एक ही कारण है कि भारत ने आर्थिक समृद्धि (economical prosperity) का “उच्चतम शिखर” बहुत समय पहले ही देख लिया था और भारत में फिर आत्मा और परमात्मा की खोज प्रारंभ हुई और तभी भारत “खोजियों और योगियों” की भूमि बन गया क्योंकि”सोने की चिड़िया” का अध्यात्मिक हो जाना कोई बड़ी बात नहीं है, सोने की चिड़िया अध्यात्मिक हो ही जाएगी।
आज भारत में आध्यात्मिकता का उतना प्रचलन नहीं है उसका कारण दरिद्रता ही है और पश्चिमी देशों से लोग भारत आ रहे हैं जीवन के अन्य आयामों की खोज के लिए क्योंकि “भौतिकवाद” (materialistm) के उच्चतम शिखर (peak) ने उन्हें यह समझा दिया कि यह उनके प्रश्नों का उत्तर नहीं है, इसीलिए आज अमेरिका जितनी रुचि ध्यान में ले रहा है उतना भारत नहीं ले रहा है, भारत की अधिकांश जनता अभी दो जून की रोटी के संघर्ष में ही रत है पर शायद एक समय के बाद भारत में फिर आध्यात्मिकता का पुनरोदय होगा।
अब इस श्लोक को प्रार्थना की तरह लिया जाये या फिर जीवन के स्वभाव या कुछ और उच्च लक्ष्य के साधन हेतु प्रोत्साहन की तरह, पर बात तो एक ही कही जा रही है “जीवन के सभी आयामों के उध्वर्गमन की”
आप सभी जीवन के सभी आयामों के उच्चतम शिखर को स्पर्श करें इसी कामना और प्रार्थना के साथ सबको नमन और दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं🙏🙏🙏🙏
*कुछ महीने पहले यह लेख लिखा था पर प्रकाश के इस पर्व पर आज इसे आपसे साझा करना प्रासंगिक लगा इसलिए कर दिया, वैसे पेज पर इस तरह के विषयों पर लेख साझा नहीं किए जाते पर आज कर दिया है आशा है आपको यह भी पसंद आएगा।
जय सियाराम 🙏🙏🙏🙏