🙏आधुनिक समय में प्राचीन गुरुकुलों की पुनःस्थापना कठिन तो है लेकिन साथ ही साथ #प्राचीन_गुरुकुलों के प्रयोजन आज के विद्यार्थियों के उज्जवल भविष्य निर्माण के लिए अत्यन्त आवश्यक भी महसूस होते हैं, ताकि हमारे विद्यार्थी अपने जीवन को उन्नत आदर्शों से पूर्ण करें और स्वावलंबी बनें यानि आर्थिक, सामाजिक, नैतिक रूप से गुलाम न बनें, आत्मनिर्भर तो बनें ही, इसके साथ-साथ बाँटकर खाने के उदारता जैसे सद्गुणों से युक्त हों यानि अपने निजी जीवन के लिए किसी व्यक्ति, वस्तु या परिस्थिति के आधीन न हों।

 

🚩केंद्र सरकार ने बीते दिन लगभग 34 साल बाद भारत की शिक्षा नीति में बदलाव किया है। सुनने में आ रहा है कि उसमें काफी सुधार किया गया है ये एक अच्छी पहल है क्योंकि शिक्षा ही जीवन का निर्माण करती है इसलिए पूर्व में #गुरुकुल में जैसी शिक्षा दी जाती थी उसमे से काफी कुछ लेकर शिक्षा व्यवस्था बनाई जाए तो भारत को विश्व गुरु बनने में देरी नही लगेगी।

 

🚩अपने आप में पूर्ण मानव का निर्माण हो और अन्त में जीवन के परम लक्ष्य के भी अधिकारी बनें, ऐसे मुद्दों को ध्यान में रखते हुए गुरुकुल शिक्षा पद्धति के सिद्धांतों का आधुनिक शिक्षा पद्धति के साथ समन्वय किया जाए तो कैसा ? आईये इस पर विचार करते हैं ।

 

#मूलभूत_योजना:

 

🚩1) जो माता-पिता अपने होने वाले बच्चे को गुरुकुल में प्रवेश करवाना चाहते हों, वे गर्भाधान से पहले ही अपना नाम व पता गुरुकुल गर्भ एवं शिशु संस्कार केन्द्र में पंजीकृत करवायें जहाँ भावी शिशु के माता-पिता को संबंधित आवश्यक जानकारियाँ दी जाएं यानि शिशु का इस जगत में कैसे स्वागत करें, आदि-आदि विषयों के बारें में समझाया जाए ताकि उनके घर में दिव्य एवं उत्तम आत्मा ही जन्म लें ।

 

🚩2) जब शिशु का जन्म हो तब #गुरुकुल भावी विद्यार्थी निर्माण केन्द्र में अपना नाम पंजीकृत करवाएं जहाँ शिशु के माता-पिता को शिशु के लालन-पालन के विषय में प्रशिक्षण दिया जाए कि कैसे शिशु के स्वास्थ्य व संस्कार को मजबूत किया जाए आदि-आदि  तो जन्म से लेकर 7 वर्ष की आयु तक माता-पिता बच्चे को स्वस्थ व मजबूत बनायें ।

 

🚩3) 7 से 9 साल के बच्चों को पूर्व #गुरुकुलप्रवेशप्रशिक्षण केन्द्रों में भेजा जाए जहाँ बच्चों को संस्कृत श्लोक उच्चारण, एक आसन पर स्थिर बैठने की एवं चित्त को एकाग्र करने के त्राटक, ध्यान आदि यौगिक प्रयोग करवाए जाएँ । यह कक्षा प्रातः 8 से 10 बजे तक की हो ।

 

🚩4) 9 वर्ष की उम्र में ‘#उपनयनसंस्कार’ करवाकर विद्यार्थी को ‘#ब्रह्मचर्यआश्रम’ में प्रविष्ट करवाया जाए जिसमें विद्यार्थी को #गायत्री€मंत्र दिया जाता है, अगर संभव हो तो किसी समर्थ महापुरुष से ‘#सारस्वत्य_मंत्र’ की दीक्षा दिलवाई जाए ताकि विद्यार्थी की सुषुप्त शक्तियाँ जाग्रत  हों ।

 

🚩5) #उपनयन_संस्कार के बाद विद्यार्थी को गुरुकुल में प्रवेश करवाया जाए जहाँ वह 12 वर्षों तक यानि 9 साल की उम्र से लेकर 21 साल की उम्र तक संपूर्ण ब्रह्मचर्य आश्रम के नियमों का पालने करते हुए विद्याध्ययन करे । इसका वर्णन #गृहसूत्र में भी आता है कि जन्म से आठवें वर्ष में उपनयन होने के पश्चात् वेदों का अध्ययन आरम्भ करे ।

 

🚩6) विद्यार्थी को तिलक करना अत्यन्त आवश्यक है ताकि उसका तीसरा नेत्र विकसित हो । विशेषरूप से चंदन का तिलक उत्तम है जिसमें हल्दी एवं चुने का परिमित मात्र में मिश्रण हो जो उसके तीसरे नेत्र को विकसित करने में मदद करता है ।

 

🚩7) #पद्मपुराण में आता है कि प्रतिदिन आयु और आरोग्य की सिद्धि के लिये तन्द्रा और आलस्य आदि का परित्याग करके अपने से बड़े पुरुषों को विधिपूर्वक प्रणाम करे और इस प्रकार गुरुजनों को नमस्कार करने का स्वभाव बना ले । नमस्कार करनेवाले ब्रह्मचारी को बदले में – ‘आयुष्मान भव सौम्य’ करके आशीर्वाद देना चाहिए, ऐसा विधान है । अपने दोनों हाथों को विपरीत दिशा में करके गुरु के चरणों का स्पर्श करना उचित है । शिष्य जिनसे लौकिक, वैदिक तथा आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करता है, उन गुरुदेव को वह पहले प्रणाम करे ।

 

🚩8) गुरुकुलों की स्थापना शहरी वातावरण से दूर प्राकृतिक वातावरण में हो । गुरुकुल में विद्याध्ययन के लिए कक्षाओं के साथ-साथ प्रार्थना भवन, क्रीड़ा मैदान, पुस्तकालय/वाचनालय, भोजनशाला, गौशाला, औषधालय, विद्यार्थी निवास हेतु विशाल भवन एवं स्नानागार हों।

 

🚩9) कक्षा में विद्यार्थी जमीन पर आसन बिछाकर बैठे और बैठनेवाली डेस्क रहें क्योंकि जमीन पर अर्थिंग मिल जाएगी तो विद्यार्थी का आंतरिक विकास कुंठित हो जाएगा, इसलिए ।

 

🚩11) विद्यार्थी प्रातःसंध्या उपरांत सूर्य को अर्घ्य अवश्य दे ताकि विद्यार्थी कुशाग्र-बुद्धि, बलवान-आरोग्यवान बने ।

 

🚩12) विद्यार्थी शिखा रखे एवं शिखा बंधन का तरीका सीखे, जो वैश्विक सूक्ष्म ज्ञान तरंगों को झेल सकता है । शिखा में निम्न मंत्र कहते हुए तीन गांठ लगाने से मन संयत रहता है और मन में बुरे विचार नहीं आते ।

मन्त्र- ॐ विश्वानीदेव सवितुदुरीतानी परासुव यत् भद्रं तन्न आसुव ।

 

🚩13) विद्यार्थी हर तीन महीनों में मुंडन करवाएँ जिससे विद्यार्थी में सात्विकता बढ़ती है और धूप में जाते समय सिर खुला न रखे, टोपी आदि पहने अथवा वस्त्र से सिर ढ़के और पैरो में चप्पल पहने, नंगे पैर न धूमे ।

 

🚩14) विद्यार्थी कौपीन अथवा लंगोटधारी हो ।

 

🚩15) विद्यार्थी सख्त आसन पर शयन करे ताकि उसका शरीर फुर्तीला व स्वस्थ बना रहे और आलस्य उसे ना घेरे ।

 

🚩16) गुरुकुल की प्रत्येक छोटे-बड़े सेवाकार्य विद्यार्थियों द्वारा ही करवाए जाएँ जैसे कि,

(अ) गुरुकुल की सफाई ।

(आ) बाग-बगीचों आदि का निर्माण ।

(इ) भोजनशाला में सब्जी काटना, रोटी बनाना, भोजन परोसना आदि आवश्यक कार्य ।

(ई) गौ-शाला में सफाई, गौओं का चारा खिलाना आदि कार्य ।

 

🚩यानि जो भी जरुरी छोटे-बड़े सेवाकार्य हों वो विद्यार्थियों द्वारा ही संपन्न करवाए जाएँ ताकि विद्यार्थी मेहनती बनें एवं उनमें परस्पर भावयन्तु, स्वनिर्भरता, स्वावलंबन और सेवा-भाव जैसे दैवी गुणों का विकासत हो ।

 

🚩17) गुरुकुल में विद्यार्थी एक तपस्वी जीवन बिताए । अपना निजी कार्य खुद ही करे, व्यक्तिगत कार्यों जैसे कपड़े धोना आदि में दूसरों का सहारा न ले ।

 

🚩18) गुरुकुल में प्रथम पाँच वर्ष यानि 9 साल की उम्र से 13 साल की उम्र तक उसे भाषाज्ञान, व्याकरण, संख्याज्ञान एवं गणना आदि मूलभूत विद्या सिखाई जाए जिसमें संस्कृत भाषा सीखना अनिवार्य हो । यानि प्रथम वर्ष से ही संस्कृत सिखाना प्रारंभ करें व दूसरे साल संस्कृत के साथ हिन्दी, तीसरे साल संस्कृत, हिन्दी के साथ स्थानिक भाषा और चौथे साल संस्कृत, हिन्दी, स्थानिक भाषा के साथ अंग्रेजी सिखाना आरंभ करें । तब तक उन विद्यार्थियों का आचार्य एक ही हो और उन विद्यार्थीयों की संपूर्ण जिम्मेदारी उन आचार्य की ही रहेगी ।

 

🚩तदनन्तर यानि 14 साल की उम्र से 21 साल की उम्र तक एक विशिष्ट विद्या अथवा कला विद्यार्थी की रूचि व योग्यता के अनुसार सिखावें जैसे कि अर्थशास्त्र, भुगोल, आयुर्वेद, संगीत, गणनासंबंधी शास्त्र, कृषि विज्ञान, अस्त्र-शस्त्र विद्या आदि और कोई प्रतिभाशाली विद्यार्थी हो तो एक से ज्यादा विषय में भी अपना गति कर सके । यहाँ पर जिस विषय का विद्यार्थी हो, उस विद्यार्थी की देखभाल की जिम्मेदारी उस विषय को सिखानेवाले आचार्य की होगी ।

 

🚩19) विद्यार्थियों की परीक्षा प्रायोगिक हो, न कि लिखित यानि विद्यार्थी अपने सीखी हुई विद्या का प्रायोगिक प्रदर्शन करें । ताकि विद्यार्थी गुरुकुल से बाहर आने के बाद सिखी हुई विद्या का सदुपयोग मानव समाज में कर सकें । यानि विद्यार्थी गुरुकुल से निकले तो किस ना किसी विषय का विशेषज्ञ होकर ही बाहर निकलें जिसका दर्जा आजकल के इंजीनीयरों एवं डॉक्टरों से भी कई गुना ऊँचा हो, जो अपनी खुद की एक समाज उपयोगी संस्था खड़ी कर, समाज व राष्ट्र के सर्वांगीण विकास में भागीदार हो ।

 

🚩20) 21 वर्ष की आयु के बाद विद्यार्थी यदि गुरुकुल में आचार्य के तौर पर नियुक्ति पाना चाहे तो पा सकता है ।

 

🚩21) आचार्य वर्ग का निवास स्थान गुरुकुल में ही हो, यानि आचार्य अपने पूरे परिवार के साथ गुरुकुल में ही निवास करें, विद्यार्थियों को अपने पुत्रवत् पालन करें व अपने बच्चों को शिक्षार्थ योग्य आयु होने के पश्चात् अन्यत्र गुरुकुल में भेजे अथवा वह खुद शिक्षा न देकर दूसरे आचार्यों से ही शिक्षा दिलवाएँ ।

 

🚩22) और आचार्य की पत्नियों का गुरुकुल के विद्यार्थी माता के समान आदर करें और वे भी विद्यार्थियों के पालन पोषण पर अपने पुत्रों के समान सस्नेह करें एवं ध्यान दें अथवा तो गुरुपत्नियाँ अलग से कन्याओं के लिए नगर के पास में गुरुकुल चलाएँ जहाँ कन्याएँ आचार्याओं के देख-रेख में ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हुए संयम व सदाचारपुर्वक विद्याध्यन करें ।

 

🚩23) गुरुकुल में आचार्यों को नियुक्त करने से पहले गुरुकुल आचार्य प्रशिक्षण केन्द्र में इच्छुक व्यक्ति अपना नाम दर्ज करवाएँ, जहाँ उन्हें गुरुकुल के नीति नियमों के बारे में अच्छी तरह से परिचित करवाया जाए । यह प्रशिक्षण कम से कम 6 माह तक का हो । परंतु यह विधान गुरुकुल में ही पढ़े हुए विद्यार्थियों के लिए लागू नहीं होता । यह तो केवल नवीन व्यक्तियों को ही लागू होता है ।

 

🚩24) गुरुकुल में पहले 5 वर्ष तक पढ़ानेवाले आचार्य की उम्र 35 वर्ष से अधिक होनी चाहिए और 14 वर्ष से 21 वर्ष तक के विद्यार्थियों को पढ़ानेवाले 45 से 50 वर्ष से अधिक आयु के होने चाहिए ।

 

🚩25) गुरुकुल में विद्यार्थी पद्मपुराण के स्वर्गखण्ड में बताये गये ब्रह्मचारी शिष्यों के धर्म का यथासंभव पालन करें ।

 

🚩केन्द्र सरकार चाहे तो यह सभी नियम विद्यालयों में पढ़ते समय करवाये जा सकते है उपरोक्त नियमों का पालन किया जाए तो विद्यार्थी पूर्ण बनेंगे तब वो उन्नति, वो विकास केवल एक विद्यार्थी का ही नहीं होगा बल्कि पूरे राष्ट्र का होगा । उस भारत देश की तस्वीर कुछ अलग ही निराली होगी। हमारा भारत देश सारे विश्व का मार्गदर्शक सिद्ध होगा ।

 

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🕉🇮🇳🚩#जयजयश्रीराम🕉🇮🇳🚩

Today I will narrate you a small story, no…..no…… I will remind you of a story. Once there was a father and a son. Father asked his son, what is this? Son replied, it is a crow. After sometime, he again asked and son again replied the same. It continued for a while with some time interval. Lastly, his son got irritated and said, “I have told you ten times that it is a crow. Why don’t you remember.” The father said,  “son, you had asked me the same question hundred times, when you were little but I did not get irritated”.

This story is repeated in almost every house, where they have old age parents or grandparents. There are lots of habits, associated with old age, like memory loss, repeating things again and again, talking too much, rigidity in behaviour, etc. Though these problems are harmless but are annoying, if we don’t understand the situation. Once we accept that it is bound to happen to almost all the old age persons, may be Sooner or later, then we will feel comfortable in handling the issues. Actually till date we have known the term parenting in context of our children, but dear, let me tell you that handling old age parents or grandparents is also parenting, as they tend to be childlike at this age. Shhhhhhh…….. Don’t let them know that you are treating them as your children. Nobody accepts the factors that are associated with old age and reminding them that they are losing memory or repeating things again and again or becoming adamant, will hurt their ego. We should smartly handle our old age parents or grandparents as they have been doing in our young age and in a manner that they are convinced to do whatever is beneficial for them. I know, it’s time consuming but just remember those old days when we had been demanding so much time and our parents used to attend us despite their busy schedule and pre-occupations.

 I have a friend, whose father narrates his past time stories repeatedly. He listens to him patiently and never gets irritated. He told me that he listens to the stories again and again, just to see the smile and happiness on his face and after all, what else does he have to talk about because he is getting old day by day and is cut off from rest of the world. 

As we manage to spare time for children, our hobbies, entertainment, similarly we need to spend time with our old age parents and handle them with care. Let’s start parenting our old age parents and grandparents covertly. 

Happy parenting!!!

Today everybody is well acquainted with the name – ‘Art of living’. The name itself manifests the purpose of organisation.  If you take up courses taught in this organisation only then you will experience the bliss as you can’t enjoy swimming unless you get into water. So, one has to start the journey on this path and rest of the things will follow automatically. There are a lot of courses in Art of Living but the chief feature is Sudarshan Kriya. There are many published papers regarding benefits of Sudarshan kriya which says that it releases such hormones which reduces stress, increases release of happy hormones & antioxidants, balances LDL/HDL levels and changes the nature of malignant cells. Gurudev Sri Sri Ravishankar ji has formulated it in a manner to make it accessible for a common man too.

Sudarshan Kriya practice makes a person healthier, happier and gives a feeling to be on the top of the world. Stress is the killing element in one’s life and daily practice of Sudarshan Kriya helps in dealing with the stress, actually I would say that it does not let the stress to come at all. Attitude towards life changes. People say that they don’t have time to spare for such things but let me tell you that you just do the course and your experience of Sudarshan Kriya will itself manage you to do the Kriya daily. It’s not merely a course rather it’s a full package of happiness, health, time management and spirituality. One thing which comes in bonus is the Art of Living family. You will never feel like a stranger there. The way in which these courses are organised by the faculties, is commendable. The bond between teacher/guru and participant/devotee is forever.

I am writing this, not on the basis of any survey or articles. My own experience has inspired me to write this and also the experience shared by the persons who have done the course at my instance. 

Come let’s fly high with joy and happiness coupled with good health.

Immunity is the most talked about word/subject these days. Though it’s not that we should be concerned about our immunity only when there is epidemic or pandemic or our body suffers from any disease. Immunity for body should be taken care of on daily basis irrespective of the body being healthy. It’s not such thing which can be developed overnight. It’s a continual process. 

The wholesome meal taken at a time should always incorporate three types of foods, i.e. 1 Body building foods, 2 Energy giving foods, 3 Protective & Regulatory foods. It’s the third category of foods through which we develop immunity. In this article, I will talk only about the third category of foods. The vitamins and minerals required for our body enhance immunity. Though the quantity of vitamins and minerals required for body is very less yet very essential. We need to incorporate these foods not only daily in our diet rather in every meal of the day. Most of the vitamins and minerals are not stored in the body and excess of it is excreted by the body. If we eat reasonably and diligently then our demand for vitamins and minerals is fulfilled very easily. We need not to make extra effort for it. Most of the vegetables, fruits, salads and other accompaniments in the meal provide vitamins and minerals. In addition to it, certain foods like ginger, amla and turmeric also boost immunity and these items are liberally used in every indian cuisine. If we ensure to take seasonal fruits, salads, dry fruits and other accompaniments, daily in our diet, then it would suffice the purpose. As we know, salad can be prepared in various types as per taste, like wise, fruits can also be consumed in the way we like, for example, if somebody doesn’t like eating a banana then it can be consumed in the form of banana shake or with curd as fruit raita. There are very little things which can improve quality of meal and at the same time will enhance the taste, such as, adding a little bit of lime juice to dal or pickle with parantha, khichdi or dal-rice. 

The process of absorption of nutrients in the body is very complex and hard to understand for a common man. Therefore, to put it in simpler manner, one should try to incorporate maximum colours in meal by way of different food items. To make it understand practically, let us assume a meal having following items:

Kidney beans( rajmah)

Rice

Cucumber curd

Chapati

Pumpkin vegetable

The above dishes would have rajmah, tomatoes, onion, green chillies, rice, curd, cucumber, coriander leaves, wheat, pumpkin and onions. It means that the meal would have colours like red, white, green and yellow and it would easily provide all three categories of foods, body-building, energy giving and protective & regulatory foods.

So we should try to incorporate foods of different colours which would provide us all the nutrients. In addition to this, moderation is the thumb rule. To maintain good immunity level, the nutritious diet should be consistent.