1- रसोई घर के पास में पेशाब करना ।

2- टूटी हुई कन्घी से कंगा करना ।

3- टूटा हुआ सामान उपयोग करना।

4- घर में कूडा – कचरा रखना।

5- रिश्तेदारो से बदसुलूकी करना।

6- प्रथम बांए पैर से पैंट,पायजामा, जूते चप्पल आदि  पहनना।

7- संध्या वेला मे सोना।

8- मेहमान आने पर नाराज होना।

9- आमदनी से ज्यादा खर्च करना।

10-दाँत से रोटी काट कर खाना।

11-चालीस दीन से ज्यादा बाल रखना ।

12-दांत से नाखून काटना।

14- महिलाओं का खड़े खड़े बाल  संवारना/बांधना।

15 -फटे हुए कपड़े पहनना ,चाहे वह जीन्स ही क्यों न हो ।

16-सुबह सूरज निकलने तक सोते रहना।

17- पेड़ के नीचे पेशाब करना।

18- उल्टा सोना।

19-श्मशान भूमि में हँसना या खेलना ।

20- पीने का पानी रात में खुला रखना ।

21- रात में मांगने वाले को कुछ ना देना ।

22-बुरे नकारात्मक विचार रखना   ।

23-अपवित्र अवस्था में  धर्मग्रंथ पढ़ना।

24-शौच करते वक्त बात करना।

25- हाथ धोए बगैर भोजन करना ।

26- हर समय अपनी सन्तान को कोसना।

27-दरवाजे पर बैठकर खाना पीना ।

28- लहसुन प्याज के छिलके जलाना।

29-संत, गुरु ब्राह्मणों ,बुजुर्गों आदि पूज्य जनों का अनादर करना ।

30- फूक मार के दीपक बुझाना।

31- ईश्वर को धन्यवाद किए बिना भोजन करना।

32- झूठी कसम खाना।

33-जूते चप्पल उल्टा देख कर उसको सीधा न करना।

34-मंगलवार, शनिवार संक्रांति अमावश्या, बुजुर्गों के श्राद्ध के दिन दाड़ी बाल आदि क्षौर हजामत करना ,तेल मालिस करना ।

35- मकड़ी का जाला घर में रखना।

36- रात को झाडू लगाना।

37- अन्धेरे में भोजन करना ।

38- देव ब्राह्मणों आदि पूज्य जनों को झूठा देना ।

39- धर्मग्रंथ न पढ़ना ।

40- नदी, तालाब में शौच साफ करना और उसमें पेशाब करना ।

41- गाय , बैल को लात मारना ।

42-माँ-बाप की सेवा न करके , अपमान करना ।

43-किसी की गरीबी और लाचारी का मजाक उड़ाना ।

44- दाँत, बाल कपड़े गंदे रखना और नित्य  स्नान न करना ।

45- बिना स्नान किये और संध्या के समय भोजन करना ।

46- पडोसियों का अपमान करना, गाली देना ।

47-मध्यरात्रि में भोजन करना ।

48-गंदे बिस्तर में सोना ।

49-हर समय वासना और क्रोध से भरे रहना एवं

50-दूसरे को अपने से हीन समझना आदि ।

—– —– —– —– —-

शास्त्रों में वर्णित है कि जो दूसरों का भला करता है।

ईश्वर उसका भला करता है।

परोपकाराय पुण्याय पापाय पर पीडनम्

शेयर जरूर करें

ताकि किसी की लेखनी का परिश्रम व्यर्थ  न जाये.l

पं. भगवती प्रसाद सेमवाल आचार्य

(कथावक्ता, वास्तुविद् एवं ज्योतिषाचार्य)

🙏आधुनिक समय में प्राचीन गुरुकुलों की पुनःस्थापना कठिन तो है लेकिन साथ ही साथ #प्राचीन_गुरुकुलों के प्रयोजन आज के विद्यार्थियों के उज्जवल भविष्य निर्माण के लिए अत्यन्त आवश्यक भी महसूस होते हैं, ताकि हमारे विद्यार्थी अपने जीवन को उन्नत आदर्शों से पूर्ण करें और स्वावलंबी बनें यानि आर्थिक, सामाजिक, नैतिक रूप से गुलाम न बनें, आत्मनिर्भर तो बनें ही, इसके साथ-साथ बाँटकर खाने के उदारता जैसे सद्गुणों से युक्त हों यानि अपने निजी जीवन के लिए किसी व्यक्ति, वस्तु या परिस्थिति के आधीन न हों।

 

🚩केंद्र सरकार ने बीते दिन लगभग 34 साल बाद भारत की शिक्षा नीति में बदलाव किया है। सुनने में आ रहा है कि उसमें काफी सुधार किया गया है ये एक अच्छी पहल है क्योंकि शिक्षा ही जीवन का निर्माण करती है इसलिए पूर्व में #गुरुकुल में जैसी शिक्षा दी जाती थी उसमे से काफी कुछ लेकर शिक्षा व्यवस्था बनाई जाए तो भारत को विश्व गुरु बनने में देरी नही लगेगी।

 

🚩अपने आप में पूर्ण मानव का निर्माण हो और अन्त में जीवन के परम लक्ष्य के भी अधिकारी बनें, ऐसे मुद्दों को ध्यान में रखते हुए गुरुकुल शिक्षा पद्धति के सिद्धांतों का आधुनिक शिक्षा पद्धति के साथ समन्वय किया जाए तो कैसा ? आईये इस पर विचार करते हैं ।

 

#मूलभूत_योजना:

 

🚩1) जो माता-पिता अपने होने वाले बच्चे को गुरुकुल में प्रवेश करवाना चाहते हों, वे गर्भाधान से पहले ही अपना नाम व पता गुरुकुल गर्भ एवं शिशु संस्कार केन्द्र में पंजीकृत करवायें जहाँ भावी शिशु के माता-पिता को संबंधित आवश्यक जानकारियाँ दी जाएं यानि शिशु का इस जगत में कैसे स्वागत करें, आदि-आदि विषयों के बारें में समझाया जाए ताकि उनके घर में दिव्य एवं उत्तम आत्मा ही जन्म लें ।

 

🚩2) जब शिशु का जन्म हो तब #गुरुकुल भावी विद्यार्थी निर्माण केन्द्र में अपना नाम पंजीकृत करवाएं जहाँ शिशु के माता-पिता को शिशु के लालन-पालन के विषय में प्रशिक्षण दिया जाए कि कैसे शिशु के स्वास्थ्य व संस्कार को मजबूत किया जाए आदि-आदि  तो जन्म से लेकर 7 वर्ष की आयु तक माता-पिता बच्चे को स्वस्थ व मजबूत बनायें ।

 

🚩3) 7 से 9 साल के बच्चों को पूर्व #गुरुकुलप्रवेशप्रशिक्षण केन्द्रों में भेजा जाए जहाँ बच्चों को संस्कृत श्लोक उच्चारण, एक आसन पर स्थिर बैठने की एवं चित्त को एकाग्र करने के त्राटक, ध्यान आदि यौगिक प्रयोग करवाए जाएँ । यह कक्षा प्रातः 8 से 10 बजे तक की हो ।

 

🚩4) 9 वर्ष की उम्र में ‘#उपनयनसंस्कार’ करवाकर विद्यार्थी को ‘#ब्रह्मचर्यआश्रम’ में प्रविष्ट करवाया जाए जिसमें विद्यार्थी को #गायत्री€मंत्र दिया जाता है, अगर संभव हो तो किसी समर्थ महापुरुष से ‘#सारस्वत्य_मंत्र’ की दीक्षा दिलवाई जाए ताकि विद्यार्थी की सुषुप्त शक्तियाँ जाग्रत  हों ।

 

🚩5) #उपनयन_संस्कार के बाद विद्यार्थी को गुरुकुल में प्रवेश करवाया जाए जहाँ वह 12 वर्षों तक यानि 9 साल की उम्र से लेकर 21 साल की उम्र तक संपूर्ण ब्रह्मचर्य आश्रम के नियमों का पालने करते हुए विद्याध्ययन करे । इसका वर्णन #गृहसूत्र में भी आता है कि जन्म से आठवें वर्ष में उपनयन होने के पश्चात् वेदों का अध्ययन आरम्भ करे ।

 

🚩6) विद्यार्थी को तिलक करना अत्यन्त आवश्यक है ताकि उसका तीसरा नेत्र विकसित हो । विशेषरूप से चंदन का तिलक उत्तम है जिसमें हल्दी एवं चुने का परिमित मात्र में मिश्रण हो जो उसके तीसरे नेत्र को विकसित करने में मदद करता है ।

 

🚩7) #पद्मपुराण में आता है कि प्रतिदिन आयु और आरोग्य की सिद्धि के लिये तन्द्रा और आलस्य आदि का परित्याग करके अपने से बड़े पुरुषों को विधिपूर्वक प्रणाम करे और इस प्रकार गुरुजनों को नमस्कार करने का स्वभाव बना ले । नमस्कार करनेवाले ब्रह्मचारी को बदले में – ‘आयुष्मान भव सौम्य’ करके आशीर्वाद देना चाहिए, ऐसा विधान है । अपने दोनों हाथों को विपरीत दिशा में करके गुरु के चरणों का स्पर्श करना उचित है । शिष्य जिनसे लौकिक, वैदिक तथा आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करता है, उन गुरुदेव को वह पहले प्रणाम करे ।

 

🚩8) गुरुकुलों की स्थापना शहरी वातावरण से दूर प्राकृतिक वातावरण में हो । गुरुकुल में विद्याध्ययन के लिए कक्षाओं के साथ-साथ प्रार्थना भवन, क्रीड़ा मैदान, पुस्तकालय/वाचनालय, भोजनशाला, गौशाला, औषधालय, विद्यार्थी निवास हेतु विशाल भवन एवं स्नानागार हों।

 

🚩9) कक्षा में विद्यार्थी जमीन पर आसन बिछाकर बैठे और बैठनेवाली डेस्क रहें क्योंकि जमीन पर अर्थिंग मिल जाएगी तो विद्यार्थी का आंतरिक विकास कुंठित हो जाएगा, इसलिए ।

 

🚩11) विद्यार्थी प्रातःसंध्या उपरांत सूर्य को अर्घ्य अवश्य दे ताकि विद्यार्थी कुशाग्र-बुद्धि, बलवान-आरोग्यवान बने ।

 

🚩12) विद्यार्थी शिखा रखे एवं शिखा बंधन का तरीका सीखे, जो वैश्विक सूक्ष्म ज्ञान तरंगों को झेल सकता है । शिखा में निम्न मंत्र कहते हुए तीन गांठ लगाने से मन संयत रहता है और मन में बुरे विचार नहीं आते ।

मन्त्र- ॐ विश्वानीदेव सवितुदुरीतानी परासुव यत् भद्रं तन्न आसुव ।

 

🚩13) विद्यार्थी हर तीन महीनों में मुंडन करवाएँ जिससे विद्यार्थी में सात्विकता बढ़ती है और धूप में जाते समय सिर खुला न रखे, टोपी आदि पहने अथवा वस्त्र से सिर ढ़के और पैरो में चप्पल पहने, नंगे पैर न धूमे ।

 

🚩14) विद्यार्थी कौपीन अथवा लंगोटधारी हो ।

 

🚩15) विद्यार्थी सख्त आसन पर शयन करे ताकि उसका शरीर फुर्तीला व स्वस्थ बना रहे और आलस्य उसे ना घेरे ।

 

🚩16) गुरुकुल की प्रत्येक छोटे-बड़े सेवाकार्य विद्यार्थियों द्वारा ही करवाए जाएँ जैसे कि,

(अ) गुरुकुल की सफाई ।

(आ) बाग-बगीचों आदि का निर्माण ।

(इ) भोजनशाला में सब्जी काटना, रोटी बनाना, भोजन परोसना आदि आवश्यक कार्य ।

(ई) गौ-शाला में सफाई, गौओं का चारा खिलाना आदि कार्य ।

 

🚩यानि जो भी जरुरी छोटे-बड़े सेवाकार्य हों वो विद्यार्थियों द्वारा ही संपन्न करवाए जाएँ ताकि विद्यार्थी मेहनती बनें एवं उनमें परस्पर भावयन्तु, स्वनिर्भरता, स्वावलंबन और सेवा-भाव जैसे दैवी गुणों का विकासत हो ।

 

🚩17) गुरुकुल में विद्यार्थी एक तपस्वी जीवन बिताए । अपना निजी कार्य खुद ही करे, व्यक्तिगत कार्यों जैसे कपड़े धोना आदि में दूसरों का सहारा न ले ।

 

🚩18) गुरुकुल में प्रथम पाँच वर्ष यानि 9 साल की उम्र से 13 साल की उम्र तक उसे भाषाज्ञान, व्याकरण, संख्याज्ञान एवं गणना आदि मूलभूत विद्या सिखाई जाए जिसमें संस्कृत भाषा सीखना अनिवार्य हो । यानि प्रथम वर्ष से ही संस्कृत सिखाना प्रारंभ करें व दूसरे साल संस्कृत के साथ हिन्दी, तीसरे साल संस्कृत, हिन्दी के साथ स्थानिक भाषा और चौथे साल संस्कृत, हिन्दी, स्थानिक भाषा के साथ अंग्रेजी सिखाना आरंभ करें । तब तक उन विद्यार्थियों का आचार्य एक ही हो और उन विद्यार्थीयों की संपूर्ण जिम्मेदारी उन आचार्य की ही रहेगी ।

 

🚩तदनन्तर यानि 14 साल की उम्र से 21 साल की उम्र तक एक विशिष्ट विद्या अथवा कला विद्यार्थी की रूचि व योग्यता के अनुसार सिखावें जैसे कि अर्थशास्त्र, भुगोल, आयुर्वेद, संगीत, गणनासंबंधी शास्त्र, कृषि विज्ञान, अस्त्र-शस्त्र विद्या आदि और कोई प्रतिभाशाली विद्यार्थी हो तो एक से ज्यादा विषय में भी अपना गति कर सके । यहाँ पर जिस विषय का विद्यार्थी हो, उस विद्यार्थी की देखभाल की जिम्मेदारी उस विषय को सिखानेवाले आचार्य की होगी ।

 

🚩19) विद्यार्थियों की परीक्षा प्रायोगिक हो, न कि लिखित यानि विद्यार्थी अपने सीखी हुई विद्या का प्रायोगिक प्रदर्शन करें । ताकि विद्यार्थी गुरुकुल से बाहर आने के बाद सिखी हुई विद्या का सदुपयोग मानव समाज में कर सकें । यानि विद्यार्थी गुरुकुल से निकले तो किस ना किसी विषय का विशेषज्ञ होकर ही बाहर निकलें जिसका दर्जा आजकल के इंजीनीयरों एवं डॉक्टरों से भी कई गुना ऊँचा हो, जो अपनी खुद की एक समाज उपयोगी संस्था खड़ी कर, समाज व राष्ट्र के सर्वांगीण विकास में भागीदार हो ।

 

🚩20) 21 वर्ष की आयु के बाद विद्यार्थी यदि गुरुकुल में आचार्य के तौर पर नियुक्ति पाना चाहे तो पा सकता है ।

 

🚩21) आचार्य वर्ग का निवास स्थान गुरुकुल में ही हो, यानि आचार्य अपने पूरे परिवार के साथ गुरुकुल में ही निवास करें, विद्यार्थियों को अपने पुत्रवत् पालन करें व अपने बच्चों को शिक्षार्थ योग्य आयु होने के पश्चात् अन्यत्र गुरुकुल में भेजे अथवा वह खुद शिक्षा न देकर दूसरे आचार्यों से ही शिक्षा दिलवाएँ ।

 

🚩22) और आचार्य की पत्नियों का गुरुकुल के विद्यार्थी माता के समान आदर करें और वे भी विद्यार्थियों के पालन पोषण पर अपने पुत्रों के समान सस्नेह करें एवं ध्यान दें अथवा तो गुरुपत्नियाँ अलग से कन्याओं के लिए नगर के पास में गुरुकुल चलाएँ जहाँ कन्याएँ आचार्याओं के देख-रेख में ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हुए संयम व सदाचारपुर्वक विद्याध्यन करें ।

 

🚩23) गुरुकुल में आचार्यों को नियुक्त करने से पहले गुरुकुल आचार्य प्रशिक्षण केन्द्र में इच्छुक व्यक्ति अपना नाम दर्ज करवाएँ, जहाँ उन्हें गुरुकुल के नीति नियमों के बारे में अच्छी तरह से परिचित करवाया जाए । यह प्रशिक्षण कम से कम 6 माह तक का हो । परंतु यह विधान गुरुकुल में ही पढ़े हुए विद्यार्थियों के लिए लागू नहीं होता । यह तो केवल नवीन व्यक्तियों को ही लागू होता है ।

 

🚩24) गुरुकुल में पहले 5 वर्ष तक पढ़ानेवाले आचार्य की उम्र 35 वर्ष से अधिक होनी चाहिए और 14 वर्ष से 21 वर्ष तक के विद्यार्थियों को पढ़ानेवाले 45 से 50 वर्ष से अधिक आयु के होने चाहिए ।

 

🚩25) गुरुकुल में विद्यार्थी पद्मपुराण के स्वर्गखण्ड में बताये गये ब्रह्मचारी शिष्यों के धर्म का यथासंभव पालन करें ।

 

🚩केन्द्र सरकार चाहे तो यह सभी नियम विद्यालयों में पढ़ते समय करवाये जा सकते है उपरोक्त नियमों का पालन किया जाए तो विद्यार्थी पूर्ण बनेंगे तब वो उन्नति, वो विकास केवल एक विद्यार्थी का ही नहीं होगा बल्कि पूरे राष्ट्र का होगा । उस भारत देश की तस्वीर कुछ अलग ही निराली होगी। हमारा भारत देश सारे विश्व का मार्गदर्शक सिद्ध होगा ।

 

शेयर जरुर करे आपका एक शेयर सोए हुए सनातनीयो  को जाग्रत करने मे सहायक होगा।

 

🕉🇮🇳🚩#जयजयश्रीराम🕉🇮🇳🚩

गौ माता सनातन धर्म की आधार शक्ति है । गौ माता से ही सृष्टि की कल्पना है । स्वयं भगवान श्री हरि भी धरती पर अवतार लेकर गौ सेवा करते हैं , गोविंद गोपाल आदि नाम से विभूषित होते हैं ।

ऐसी गौ माता की सेवा से आज भी मनुष्य अपने जन्म को सार्थक कर सकते हैं ,जन्म जन्मान्तरों के कष्ट ताप पाप मिटा सकते हैं आइए जानें गौ माता से जुड़ी कुछ रोचक तथ्य  ।

 

  1. गौ माता जिस जगह खड़ी रहकर आनंदपूर्वक चैन की सांस लेती है । वहां वास्तु दोष समाप्त हो जाते हैं ।

 

  1. जिस जगह गौ माता खुशी से रभांने लगे उस जगह देवी देवता पुष्प वर्षा करते हैं ।

 

  1. गौ माता के गले में घंटी जरूर बांधे । गाय के गले में बंधी घंटी बजने से गौ आरती होती है ।

 

  1. जो व्यक्ति गौ माता की सेवा पूजा करता है उस पर आने वाली सभी प्रकार की विपदाओं को गौ माता हर लेती है ।

 

  1. गौ माता के खुर्र में नागदेवता का वास होता है । जहां गौ माता विचरण करती है उस जगह सांप बिच्छू नहीं आते ।

 

  1. गौ माता के गोबर में लक्ष्मी जी का वास होता है ।

 

  1. गौ माता कि एक आंख में सूर्य व दूसरी आंख में चन्द्र देव का वास होता है ।

 

  1. गौ माता के दूध में सुवर्ण तत्व पाया जाता है, जो रोगों की क्षमता को कम करता है।

 

  1. गौ माता की पूंछ में हनुमानजी का वास होता है । किसी व्यक्ति को बुरी नजर हो जाये तो गौ माता की पूंछ से झाड़ा लगाने से नजर उतर जाती है ।

 

  1. गौ माता की पीठ पर एक उभरा हुआ कुबड़ होता है , उस कुबड़ में सूर्य केतु नाड़ी होती है । रोजाना सुबह आधा घंटा गौ माता की कुबड़ में हाथ फेरने से रोगों का नाश होता है और उच्च रक्त चाप नियंत्रित होता है ।

 

  1. एक गौ माता को चारा खिलाने से तैंतीस कोटि के देवी देवताओं को भोग लग जाता है ।

 

  1. गौ माता के दूध, घी, मख्खन, दही, गोबर, गोमूत्र से बने पंचगव्य हजारों रोगों की दवा है । इसके सेवन से असाध्य रोग मिट जाते हैं ।गौ मूत्र अर्क से कैंसर जैसी असाध्य बीमारी का भी निवारण होता है ।

 

  1. कहते हैं जिस व्यक्ति के भाग्य की रेखा सोई हुई हो,अर्थात् जिसका भाग्य साथ नहीं दे रहा हो, वो व्यक्ति अपनी हथेली में गुड़ को रखकर गौ माता से चटाये, गौ माता की जीभ हथेली पर रखे गुड़ को चाटने से व्यक्ति की सोई हुई भाग्य रेखा खुल जाती है ।

 

  1. गौ माता के चारों चरणों के बीच से निकल कर परिक्रमा करने से इंसान भय मुक्त हो जाता है ।

 

  1. गौ माता के गर्भ से ही महान विद्वान धर्म रक्षक गौ कर्ण जी महाराज पैदा हुए थे।

 

  1. गौ माता की सेवा के लिए ही इस धरा पर देवी देवताओं ने अवतार लिये हैं ।

 

  1. जब गौ माता बछड़े को जन्म देती तब पहला दूध बांझ स्त्री को पिलाने से उनका बांझपन मिट जाता है,ऐसी मान्यता है ।

 

  1. स्वस्थ गौ माता का गौ मूत्र को रोजाना दो तोला सात पट कपड़े में छानकर सेवन करने से सारे रोग मिट जाते हैं ।

 

  1. गौ माता वात्सल्य भरी निगाहों से जिसे भी देखती है उनके ऊपर गौकृपा हो जाती है ।

 

  1. काली गाय की पूजा करने से नौ ग्रह शांत रहते हैं । जो ध्यानपूर्वक धर्म के साथ गौ पूजन करता है, उनको शत्रु दोषों से छुटकारा मिलता है ।

 

  1. गाय एक चलता फिरता मंदिर है । हमारे सनातन धर्म में तैंतीस कोटि के देवी देवता हैं , हम रोजाना तैंतीस कोटि देवी के देवताओं के मंदिर जा कर उनके दर्शन नहीं कर सकते, पर गौ माता के दर्शन से सभी देवी देवताओं के दर्शन हो जाते हैं ।

 

  1. मान्यता है कि कोई भी शुभ कार्य अटका हुआ हो। बार बार प्रयत्न करने पर भी सफल नहीं हो रहा हो तो गौ माता के कान में कहिये रूका हुआ काम बन जायेगा ।

 

  1. गौ माता सर्व सुखों की दातार है ।

 

हे मां आप अनंत ! आपके गुण अनंत ! इतना मुझमें सामर्थ्य नहीं कि मैं आपके गुणों का बखान कर सकूं ।

 

जय गाय माता की

जय श्री कृष्णा

जय माता दी 💐🙏🏻

अद्भुत और गोपनीय हैं मां भगवती के 32 नाम, नवरात्रि या अष्टमी अथवा नित्य नियम पूर्वक अवश्य पढ़ें और माता की कृपा प्राप्त करें 💐🙏🏻

घोर विपत्ति दूर करेगा माता के 32 नामों का यह अमोघ उपाय

दुर्दांत दानव महिषासुर के वध से प्रसन्न और निर्भय हो गए त्रिदेवों सहित देवताओं ने जब प्रसन्न भगवती माता से ऐसे किसी अमोघ उपाय की याचना की, जो सरल हो और कठिन से कठिन विपत्ति से छुड़ाने वाला हो।

तब कृपालु भगवती ने अपने ही बत्तीस नामों (32) की माला के एक अद्भुत गोपनीय रहस्यमय किंतु चमत्कारी जप का उपदेश किया जिसके करने से घोर से घोर विपत्ति, राज्यभय या दारुण विपत्ति से ग्रस्त मनुष्य भी भयमुक्त एवं सुखी हो जाता है।

ऐसे करें 32 नामों का दुर्लभ प्रयोग –

1-दैनिक कार्यों से निवृत्त होने के बाद देहशुद्धि करके कुश या कम्बल के आसन पर बैठें।

2- पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ मुंह करें।

3- घी के दीपक जलाएं।

4- श्रद्धा भाव से मां भगवती के इन नामों की 5, 11 या 21 माला नवरात्रि के नौ दिनों तक अथवा दुर्गाष्टमी में जपें और जगत माता से अपनी मनोकामना पूर्ण करने की याचना करें। आपकी मनोकामना अवश्‍य पूर्ण होंगी।

यहां पर एक विशेष ध्यान देने वाली बात यह है कि कृपा उन्हीं लोगों पर होती है जो कृपा पात्र होते हैं ,कृपा पात्र वे होते हैं जिनमें  दया धर्म  अर्थात् श्रद्धा, विश्वास ,परोपकार का भाव एवं गौ ब्राहमण साधु सन्तों ,माता पिता गुरुजनों के प्रति श्रद्धा सेवा भाव होता है । जो अपने मनुष्य जीवन के कर्तव्यों, दायित्वों का सही पालन करते हैं । फिरभी कठिनाइयां हों तब उक्त प्रयोग साधनों से भगवती भगवान की कृपा प्राप्त होती है ।

मां भगवती श्री दुर्गा जी के चमत्कारी बत्तीस नाम –

1-दुर्गा

2-दुर्गार्तिशमनी

3-दुर्गापद्विनिवारिणी।

4-दुर्गमच्छेदिनी

5-दुर्गसाधिनी

6-दुर्गनाशिनी॥

7-दुर्गतोद्धारिणी

8-दुर्गनिहन्त्री

9-दुर्गमापहा।

10-दुर्गमज्ञानदा

11- दुर्गदैत्यलोकदवानला॥

12-दुर्गमा

13-दुर्गमालोका

14-दुर्गमात्मस्वरूपिणी।

15-दुर्गमार्गप्रदा

16-दुर्गमविद्या

17-दुर्गमाश्रिता॥

18-दुर्गमज्ञानसंस्थाना

19-दुर्गमध्यानभासिनी।

20-दुर्गमोहा

21-दुर्गमगा

22-दुर्गमार्थस्वरूपिणी॥

23-दुर्गमासुरसंहन्त्री

24-दुर्गमायुधधारिणी।

25-दुर्गमाङ्गी

26-दुर्गमता

27-दुर्गम्या

28- दुर्गमेश्वरी॥

29-दुर्गभीमा

30-दुर्गभामा

31-दुर्गभा

32-दुर्गदारिणी।

नामावलिमिमां यस्तु दुर्गाया मम मानवः॥

पठेत् सर्वभयान्मुक्तो भविष्यति न संशयः॥